हमारे देश में अक्सर लोग अंग्रेज़ी माध्यम को बहुत मह्त्व देते हैं और अंग्रेज़ी भाषा से ही लोगों की काबिलियत मापने लगते हैं। लेकिन ऐसी सोच रखने वालों के लिये प्रेमसूख देलू ने नई प्रेरणा बन गयें हैं।हम आपको ऐसे ही एक साधारण परिवार से आनेवाले शख्स की कहानी बताने जा रहें हैं, जिन्होनें अपनी ज़िंदगी में होनेवाले अभावों को अपनी मजबूती बना लिया और अपनी कड़ी मेहनत से सफलता की एक मिसाल पेश कर दी है। प्रेमसूख देलू राजस्थान के बीकानेर जिले के एक रासीसर गांव के रहने वाले हैं।
इनका जन्म 3 April, 1998 को हुआ था। प्रेमसूख एक संयुक्त परिवार से हैं। इनके पिता ऊंटगाड़ी चलाते थे। घर में कमाने के लिये सिर्फ उनके बड़े भाई ही हैं जिनके पैसों से परिवार का देखभाल होता है।
प्रेमसूख देलू के पास अधिक जमीन भी नहीं थी। जमीन का एक छोटा-सा हिस्सा ही था।
इनके भाई राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल हैं। एक कांस्टेबल की इतनी तन्ख्वाह नहीं मिलती कि उससे घर की सभी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके और समाजिक जिम्मेदारियों को आसानी से निभाया जा सके। ऐसी स्थिति में घर में अभाव होना लाजमी है। प्रेमसूख देलू का बचपन गरीबी में गुजरा। इनकी पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल से ही हुईं।
प्रेमसूख देलू इतिहास विषय से M.A की पढ़ाई किए। कॉलेज में टॉप करने के उपलक्ष में उन्हें गोल्ड मेडल से सम्मानित भी किया गया। प्रेमसूख देलू को बचपन से ही सिविल सेवा के क्षेत्र में भविष्य बनाने का सपना था। इसके लिये कुछ लोगों ने उन्हें हतोत्साहित भी किया। लोगों ने कहा कि हिन्दी माध्यम से सिविल सेवा की परीक्षा में कामयाब होना बहुत कठिन है। लोगों की बातों को सुनते हुए प्रेमसूख देलू ने सोचा कि संसाधनों की कमी से सपने देखने पर तो कोई रोक नहीं हैं।
इन्सान बड़े-से-बड़ा सपना देख सकता है और अपनी सच्ची मेहनत एवं लगन से उस सपने को सच भी बना सकता है। प्रेमसूख जब 10वीं की कक्षा में थे तब वह अपना सारा समय सिर्फ पढ़ाई में देते थे। उनकी ऐसी जीवन शैली को उनके शिक्षक ने उनको सुझाव दिया और कहा कि जीवन में अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिये कम-से-कम 6 घंटे की नींद लेना बहुत ही आवश्यक है।
प्रेमसूख देलू को 6 वर्ष में ही 12 बार सरकारी नौकरी लगी। इससे प्रेमसूख देलू के मेहनत और कठिन परिश्रम अनुमान लगाया जा सकता हैं। वर्ष 2010 में पटवारी की परीक्षा में सफल हुए और बीकानेर में पटवारी के पद पर उनकी नियुक्ति हुई। 2 वर्ष तक पटवारी के पद का कार्यभार सम्भाला। पटवारी की नौकरी लगने के बाद भी इन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखा क्योंकि उन्हें तो किसी और मंजिल की तला’श थी।